इंटेक इन्दौर चेप्टर की शुरूआत में स्थानीय कलाकारों की चित्रकला नुमाइश,कलाकर्मी दिलीप चिंचालकर के लंदन यात्रावृत्त के साथ संगीत का सुमधुर आयोजन भी था. अतिथि कलाकार थीं जानी मानी गायिका कलापिनी कोमकली ;शास्त्रीय संगीत के तीर्थ पं.कुमार गंधर्व की सुपुत्री और सुशिष्या. 18 जनवरी की रात राजबाड़ा के नैपथ्य में कलापिनी को सुनना जैसे उस समय से एकाकार होना था जो किसी ज़माने में इस राजसी वैभव के वास्तु में स्पंदित होता था. एक लम्हा तो यूँ भी लगा जैसे समय अपने को पीछे ले जाना चाहता है. मल्हारी मार्तण्ड के मंदिर के निकट बने मंच पर कलापिनी आ बिराजीं और संगीतप्रेमियों को सुनने को मिला कुमार गंधर्व गायकी का वह ठाठ जो हमेशा से रंजकता, रोमांच और रस की सृष्टि करता रहा है. कलापिनी ने अपने गायन में शास्त्रीय , उप-शास्त्रीय और लोक संगीत के सारे रंग समाहित कर उस महफ़िल को अविस्मरणीय बना दिया. मालवा की सुर-कुमारी जैसे बंदिशों के ज़रिये रसिकों से बतिया रही थी. इंटेक इन्दौर इकाई की अगुआई में आयोजित कलापिनी के इस कार्यक्रम की स्मृति श्रोता अपने साथ तो ले ही गए साथ ही राजबाड़ा जैसी पुरातत्वीय धरोहर निर्विवाद रूप से राग-रागरागिनियों के सुमधुर प्रवाह से चैतन्य हो गईं हैं.
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Saturday, March 14, 2009
उनके गाने में सुनाई दिया कुमार गंधर्व परम्परा का वैभव
इंटेक इन्दौर चेप्टर की शुरूआत में स्थानीय कलाकारों की चित्रकला नुमाइश,कलाकर्मी दिलीप चिंचालकर के लंदन यात्रावृत्त के साथ संगीत का सुमधुर आयोजन भी था. अतिथि कलाकार थीं जानी मानी गायिका कलापिनी कोमकली ;शास्त्रीय संगीत के तीर्थ पं.कुमार गंधर्व की सुपुत्री और सुशिष्या. 18 जनवरी की रात राजबाड़ा के नैपथ्य में कलापिनी को सुनना जैसे उस समय से एकाकार होना था जो किसी ज़माने में इस राजसी वैभव के वास्तु में स्पंदित होता था. एक लम्हा तो यूँ भी लगा जैसे समय अपने को पीछे ले जाना चाहता है. मल्हारी मार्तण्ड के मंदिर के निकट बने मंच पर कलापिनी आ बिराजीं और संगीतप्रेमियों को सुनने को मिला कुमार गंधर्व गायकी का वह ठाठ जो हमेशा से रंजकता, रोमांच और रस की सृष्टि करता रहा है. कलापिनी ने अपने गायन में शास्त्रीय , उप-शास्त्रीय और लोक संगीत के सारे रंग समाहित कर उस महफ़िल को अविस्मरणीय बना दिया. मालवा की सुर-कुमारी जैसे बंदिशों के ज़रिये रसिकों से बतिया रही थी. इंटेक इन्दौर इकाई की अगुआई में आयोजित कलापिनी के इस कार्यक्रम की स्मृति श्रोता अपने साथ तो ले ही गए साथ ही राजबाड़ा जैसी पुरातत्वीय धरोहर निर्विवाद रूप से राग-रागरागिनियों के सुमधुर प्रवाह से चैतन्य हो गईं हैं.
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